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सैनिक स्कूल, चित्तौड़गढ़ में उपराष्ट्रपति के संबोधन का मूलपाठ

सभी को शुभ प्रभात!

आज हम सभी अपने दो अत्यंत प्रतिष्ठित शिक्षकों, श्री राठी और श्री द्विवेदी को यहां पाकर सम्मानित महसूस कर रहे हैं। मेरा यकीन मानिए ये बहुत सख्त मिजाज के थे। जब श्री द्विवेदी गलियारों में टहलते थे, तो उनका अनुशासन अपनी तरफ खींचने वाला होता था। श्री राठी ने दशकों में कोई समझौता नहीं किया है, इस उम्र में भी उन्हें पहनावे की बहुत अच्छी समझ है। वह आज भी किसी भी युवा लड़के के लिए एक आदर्श हो सकते हैं।

कितना बड़ा बदलाव आ गया है! कहां आ गए, कितना अच्छा लग रहा है, कभी सोचा नहीं था, सैनिक स्कूल के अंदर कोई एजुकेशन का मौका मिलेगा।

जब पश्चिम बंगाल राज्य के राज्यपाल के रूप में, मैं पुरुलिया स्थित सैनिक स्कूल गया, तो मेरे पास बहुत दमदार तरीके अपना पक्ष रखने का मौका था, क्योंकि जहां आप पढ़े हैं (पूर्व शिक्षण संस्थान) उसकी बजाय दूसरे सैनिक स्कूल में जाने को आसानी से माफ़ नहीं किया जा सकता है। वहां मुझे पता चला कि सैनिक स्कूलों ने इस धरा पर मौजूद सबसे महत्वपूर्ण मानव संसाधन यानी लड़कियों के लिए दरवाजे खोल दिए हैं। मुझे बताया गया है कि अब उनकी संख्या लगभग तीस है। यह एक बड़ा बदलाव है, सकारात्मक बदलाव है और आने वाले समय में इसका बहुत प्रभाव पड़ेगा। यहां हमारी सभी बेटियों को मेरा विशेष अभिनंदन, आप हमें हर समय गौरवान्वित महसूस कराती हैं।

मैं श्री द्विवेदी और श्री राठी के संपर्क में हूं, जो बात मेरे लिए दिल को छू लेने वाली बात थी, वह थी जनरल मांदत्ता की दूरदर्शिता, उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि जब मैंने शपथ ली तो उसमें भागीदारी बहुत प्रतिनिधिपूर्ण और विभिन्न लोग उसमें शामिल हुए थे।  शपथ ग्रहण समारोह में जनरल भी आए हुए थे, दोस्त भी थे, मिस्टर राठी भी थे, सैनिक स्कूल के लड़के-लड़कियां भी थे। वह मेरे लिए बहुत ही मर्मस्पर्शी क्षण था।

जब उपराष्ट्रपति के रूप में मुझे केरल जाने का अवसर मिला, तो मुझे एक बात याद आई, जब मैंने 30 जुलाई, 2019 को पश्चिम बंगाल राज्य के राज्यपाल पद की शपथ ली, तो बोर्ड पर केरल से एक फोन आ रहा था और कॉल लगातार ड्रॉप हो रही थी। मैंने राज सिंह को फोन किया और पूछा कि सुश्री रत्ना नायर का नंबर क्या है? मैंने नंबर निकाला तो पता चला कि यह उनका नंबर था। मैंने उन्हें वापस कॉल किया। जब मैं अपनी पहली यात्रा पर केरल गया, तो वह राजभवन आना चाहती थीं, मैंने कहा नहीं मैडम, एक बार अपने छात्र का आदेश सुन लें, मैं आपके घर कन्नूर आऊंगा, मैं वहां गया और हमने साथ में समय बिताया।

मेरे युवा मित्रों, मैं आपको यह सब एक कारण की वजह से बता रहा हूं, प्रिंसिपल मैडम ने बताया कि मेरा जन्म 18 मई, 1951 को हुआ था। वह जैविक जन्म था, मेरा वास्तविक जन्म या पुनर्जन्म सैनिक स्कूल, चित्तौड़गढ़ में हुआ था। मैं आज यहां हूं, आज दुनिया में जो कुछ भी हूं, उसका श्रेय सैनिक स्कूल और मेरे शिक्षकों को जाता है.. और इस माटी को मैं सलाम करता हूं!

मुझे वह दिन याद है जब लोग मुझसे कहते थे, यह रट्टू है, रटता है.. जब भी मैं शिक्षकों से बातचीत करता था, हमारे पास अमूल बटर नहीं था, तब हमारे पास पोल्सन बटर होता था, तो पीछे से आवाज आती थी.. पोल्सन, पोल्सन।

मुझे याद है कि चित्तौड़गढ़ में बाढ़ आई थी, हमने उस पर एक निबंध लिखा था, दूसरा था बड़ा खाना, तो मैंने और मेरे दोस्त ने उस पर भी एक निबंध लिखा था। हमारे अंग्रेजी शिक्षक, अजीब निशान लगाते थे, शिक्षक ने मेरे मित्र के निबंध को सही किया और मैंने उसकी नकल कर ली। शिक्षक ने इसे भी ठीक किया।

मैंने सोचा कि मुझे स्कूल में कुछ विशेष करना चाहिए, जब हमने बड़ा खाना खाया, तो हर कोई कह रहा था कि भोजन शानदार था, मैंने सोचा कि मुझे कुछ अलग करना चाहिए, इसलिए मैं पुस्तकालय गया, पर्यायवाची शब्दों का एक शब्दकोश लिया और एक विशेष शब्द चुना, मैंने कहा कि खाना था…., शिक्षक ने पढ़ा, उन्होंने पूछा कि यह किसने लिखा है, मैं उठ गया, फिर शिक्षक ने मुझे अपनी बेल्ट उतारने के लिए कहा, मैंने उनकी आज्ञा का पालन किया, अचानक शिक्षक को एहसास हुआ कि मैं एक मेधावी छात्र था, तो उन्होंने मुझसे पूछा कि तुम्हें यह पागलपन भरा विचार कहां से आया? मैंने कहा कोलिन्स डिक्शनरी की किताब से। उन्होंने मुझसे पूछा कि किताब कहां है? मैंने कहा हॉस्टल में है, मुझे लाने को कहा गया। इस बीच पीरियड ख़त्म हो गया, लेकिन लड़के और लड़कियों, जो शब्द मैंने इस्तेमाल किया वह था, खाना स्वादिष्ट था। मेरी गलती नहीं!

मैं एक गांव से आया था, पांचवीं कक्षा तक एबीसीडी नहीं पढ़ाई गई और मुझे सैनिक स्कूल भेज दिया गया। हमारे प्रिंसिपल टोपी लगाकर घोड़े पर सवार होकर स्कूल आते थे। गांव के इस लड़के ने जीवन में ऐसी स्थिति कभी नहीं देखी थी, उसके लिए यह वंडरलैंड था। किस्मत से वह मेरी क्लास के सामने घोड़े से उतर गए और अंदर कमरे में आ गए। कक्षा में लिखा था कि, परमाणु पदार्थ का सबसे छोटा कण है। मैं समझ नहीं पाया कि बोर्ड पर क्या लिखा था, लेकिन मैं इसे याद कर सकता था। प्रिंसिपल की नजर मुझ पर थी, उन्होंने मुझसे परमाणु की परिभाषा बताने को कहा। एक प्रतिभाशाली व्यक्ति की तरह मैंने कहा कि परमाणु पदार्थ का सबसे छोटा कण है। फिर उन्होंने अगला सवाल पूछा, मुझे नहीं पता था कि वह क्या पूछ रहे हैं, मुझे तो अंग्रेजी आती ही नहीं थी, उन्होंने मुझसे तीसरा सवाल पूछा, होश उड़ गए, कि ये क्या बात कर रहे हैं, मुझे तो कुछ नहीं आता था। मैंने तो याद कर लिया। चारों ओर संदेश चला गया कि ऐसी निराशाजनक विफलता के लिए मुझे ब्लैक लिस्ट में डाल दिया जाएगा। लेकिन, मुझे प्रिंसिपल के आवास पर आने का निमंत्रण मिला, जिनकी तीन होनहार बेटियां और एक बहुत ही सुंदर पत्नी थीं। मैं वहां गया, चाय का समय हो गया था। मैं तो गांव से आया था मैंने वह चीजें कभी देखी नहीं थी। मैं देखकर दंग रह गया। चाय पेश की गई और वह विदेशी शिक्षा प्राप्त एक सख्त अनुशासनप्रिय व्यक्ति थे। मैं उन्हें यह बताने का साहस जुटा सका, “मैं होशियार लड़का हूं, मुझे अंग्रेजी नहीं आती”। उन सज्जन ने मेरी जिंदगी बदल दी। मुझे इंसाक्लोपीडिया की जानकारी दो साल में हो गई, पिकासो कौन, मुझे जानकारी हो गई, उन्होंने मुझे इस सैनिक स्कूल में मार्गदर्शन दिया, इसलिए मैं कहता हूं कि, सैनिक स्कूल में मेरा पुनर्जन्म हुआ।

अब गांव की कहानी सुनिए, हम तीन भाई थे, माता-पिता को लगा कि मैं तो पढ़ाई में बहुत अच्छा हूं तो किसी भी स्कूल में पढ़ लूंगा। तो दोनों भाइयों को पिलानी भेज दिया, मैं नाराजगी व्यक्त करना चाहता था पर कर नहीं पाया। उसी समय नजर पड़ी कि सैनिक स्कूल की प्रवेश परीक्षा हो रही है, मेरे 100% नंबर आए और छात्रवृत्ति 250 रुपये प्रतिमाह की थी। गांव में कहा कि पूरा खर्चा क्यों करता है? आधा घर क्यों नहीं भेजता? गांव के बुजुर्ग मुझसे कहते थे कि आप 250 रुपये क्यों खर्च कर रहे हो, तब ये बहुत बड़ी रकम होती थी। आप परिवार को 50% क्यों नहीं भेजते?  मेरा बड़ा भाई भी सैनिक स्कूल में था, हमारे बीच इतना प्यार था कि उसका दाखिला 6वीं क्लास में हो गया और मेरा पांचवी क्लास में। वह छठी क्लास में रुक गए, कि छोटे भाई को भी साथ आना चाहिए, तो हम साथ थे। सैनिक स्कूल से चिट्ठी जाती थी मेरे गांव, आपके वार्ड को ऊंट की सवारी की सज़ा दी गई है, बड़े भाई के लिए मेरे लिए नहीं। आसपास के कई गांवों में कोई अंग्रेजी नहीं पढ़ सकता था। शायद, किशोरपुरा में कोई शिक्षक इसे पढ़ सकता था, उसने समझा कि पुरस्कार है। मुझे अपने पिता से एक पत्र मिला, होशियार तुम हो लेकिन इनाम तो तुम्हारे बड़े भाई को मिल रहा है। देखिए कि वह क्या दिन थे। मैं समझा नहीं पाया कि क्या है।

मेरी मां हमेशा मुझे लेकर बहुत पजेसिव रहती थीं, इसलिए मैं उन्हें रोजाना एक पोस्टकार्ड लिखता था, आदरणीय माता जी चरण स्पर्श, मैं यहां ठीक हूं, पर बदलना पड़ता था कि सब जैसे ना हो। और वह पोस्टकार्ड, मेरी माता जी इकट्ठे करके, जब हम घर जाते थे तो देती थी।  सैनिक स्कूल के छात्र के रूप में जब हम भोपाल सागर में पिकनिक मनाने गए थे, हमने देखा कि यह हर तरीके से,  व्यक्तित्व का एकीकृत विकास है, उस समय मायो कॉलेज के प्रिंसिपल होते थे, मिस्टर गिब्सन, जो थोड़ी सभ्रांत मानी जाती थी, सैनिक स्कूल से सभ्रांत और कोई नहीं है। हम देश के सबसे मजबूत शैक्षणिक संस्थान हैं। लेकिन मायो कॉलेज की टीम हमें फुटबॉल में अक्सर हरा देती थी। धीरे-धीरे पता लगा कि, सैनिक स्कूल के लड़कों और अब निश्चित रूप से लड़कियों की प्रगति उल्लेखनीय, अभूतपूर्व थी, ऐसा मैंने कहीं नहीं देखा। मानव जीवन के किसी भी अनुशासन में, एक सैनिक स्कूल का छात्र नेतृत्व गुणों के लिए, उन लक्ष्यों के लिए खड़ा होगा जो हमने यहां हासिल किए हैं।

इस जगह से निकलने के बाद, इन साख, साहस और उच्च नैतिक मूल्यों के साथ, जब मैं वकील बना तो दुनिया की जानकारी पहली बार हुई, मैं आपको यह इसलिए बता रहा हूं क्योंकि आप भाग्यशाली हैं, आप ऐसे समय में भारत में रह रहे हैं जो भारत इतना आगे बढ़ रहा है जितना पहले कभी नहीं था। देश का प्रगति अजेय है। अगर हम कुछ आंकड़ों पर गौर करें, तो 2022 में कुल प्रत्यक्ष डिजिटल हस्तांतरण में, भारत ने वैश्विक लेनदेन में 46% का योगदान दिया, जो कि अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी से चार गुना अधिक था। आप इसी समय में जी रहे हैं। आप ऐसे समय में रह रहे हैं जहां भारत में इंटरनेट की प्रति व्यक्ति डेटा खपत अमेरिका और चीन की तुलना में अधिक है। लेकिन हमारे समय में मेरा एक सपना था कि मेरी एक अच्छी लाइब्रेरी हो। तो पता लगा कि हरियाणा के भिवानी जिले में एक लाइब्रेरी बिकाऊ है, अब 6000 रुपये कहां से आए? मुझे आज भी याद है कि जिस बैंक मैनेजर ने मुझे 6000 रुपये दिए, उसने मेरी प्रोफेशनल लाइफ बदल दी।

जब मैं प्रासंगिक रूप से देखता हूं, तो पाता हूं कि आप कितने बेहतर हैं, आप एक ऐसे देश के नागरिक हैं जो आईएमएफ के अनुसार अवसर और निवेश का सबसे पसंदीदा स्थान है। आपको बस अपने दिमाग में एक विचार रखने की जरूरत है, बाकी चीजें आपके साथ आ जाएंगी। यह मेरा आपको सुझाव है, मैं इसका पीड़ित रहा हूं, मुझे हमेशा लगता था कि मैं क्लास में प्रथम स्थान पर नहीं आऊंगा, तो क्या होगा? इस डर के साथ, जिया हूं मैं। स्कूल के दिनों में मुझे लगातार यह डर लगा रहता था कि अगर मैं कक्षा में टॉप नहीं कर पाया तो क्या होगा? एक समय बुखार के कारण एक दिन मेरा पेपर छूट गया, फिर भी मैं टॉपर रहा। बहुत देर बाद समझ आया कि इस डर की वजह से बहुत कुछ खो दिया। प्रतिस्पर्धा के पीछे कभी भी पागल मत बनो। नंबर 1, नहीं आता, नंबर 2, 3 आता तो कितना अच्छा होता, कुछ खेलने का मौका मिलता, कुछ गतिविधिया पाठ्यक्रम के इतर होती.. बहुत कुछ हो जाता है। एकीकृत विकास के लिए बहुत जरूरी है कि आप कभी तनाव में न रहें। हमेशा अपनी योग्यता के अनुसार चलें। पेपर के ऊपर नहर बनाना बहुत आसान है, इसे अंजाम देना भी आसान है, नदी की बात ही खास है। इसका असर सबसे ज्यादा होता है। नदी का घुमावदार बहाव प्रकृति द्वारा हमें दिया गया सबसे बड़ा उपहार है। इसका असर बहुत बड़े क्षेत्र पर पड़ता है तो नदी की तरह घुमावदार और जैसा चाहो वैसा महसूस करो।

हमारे जमाने में तो क्या था, एक विचित्र बात थी, बच्चा जन्मता था, उसकी कुंडली नहीं बनती थी, तय कर लेते थे मां-बाप की एक फौजी बनेगा यह डॉक्टर बनेगा, इंजीनियर बनेगा, यह आई.ए.एस बनेगा, पहले ही तय कर लेते थे और जिंदगी भर बच्चे को उसी ग्रुप के अंदर ढालने की कोशिश करते रहते थे।

लड़के और लड़कियों, आप भाग्यशाली हैं। समय बदल गया है। आज, आपके पास एक ऐसा इकोसिस्टम है जहां पहल और नीतियों के कारण आप अपनी क्षमता का पूरी तरह से दोहन कर सकते हैं, आप अपनी ऊर्जा का उपयोग कर सकते हैं, आप अपनी प्रतिभा को दिशा दे सकते हैं, आप बड़ी उपलब्धि हासिल कर सकते हैं। और कहते हैं ना ‘हाथ कंगन को आरसी क्या’।

इस देश में जितने स्टार्ट-अप हैं, जितने यूनिकॉर्न हैं, दुनिया में हमारी स्थिति अद्वितीय है। दुनिया में भारत की जो पहचान आज के दिन है मैं आपको दावे के साथ कह सकता हूं मैंने कभी पहले महसूस नहीं की, कभी न की। मेरी तीन विदेश यात्राओं में मैंने दुनिया के नेताओं के साथ चर्चा की है जिसमें अमेरिकन प्रेसिडेंट जो बाइडेन भी शामिल है। और मैं आपको बता सकता हूं कि इस समय भारत का उप-राष्ट्रपति होना अपने आप में गर्व की बात इसलिए है क्योंकि भारत का दुनिया में डंका बज रहा है। 1989, मेरे जीवन का एक बड़ा बदलाव था। जिस व्यक्ति ने कहा कि राजनीति में कभी नहीं जाऊंगा, मैं राजनीति में भटक गया। 1989 में लोकसभा में चुन के आया और यूनियन मिनिस्टर बना, मैं तब भी विदेश गया था। और 1989 का क्या नजारा देखा कि देश की आर्थिक साख को बचाने के लिए दुनिया हमें बैंकरप्ट ना कह दे और हम इकोनामिक वर्ल्ड में ब्लैक-लिस्ट ना हो जाए, हमें हवाई जहाज से सोना बाहर भेजना पड़ा। हमारा फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व्स एक या दो बिलियन यूएस डॉलर ही रह गया था। आज के दिन में 600 बिलियन है। कई बार तो मैं देखकर अचंभित हो जाता हूं और उन दिनों की याद आती है कि 2 बिलियन और कई बार पता लगता है कि 1 महीने में 6 बिलियन का उछाल आ गया। यह भारत की ताकत है।

मैं आपको बताना चाहता हूं कि, सितंबर 2022 हम सभी के लिए बहुत गर्व का क्षण था। सितंबर 2022 में, भारत पांचवीं सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था बन गया और इस प्रक्रिया में हमने अपने पूर्व औपनिवेशिक देश- ब्रिटेन को पीछे छोड़ दिया और इस दशक के अंत तक भारत तीसरी सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था होगा।

आपको मैं यह क्यों कह रहा हूं? जो आगे की लाइन में बैठे हैं हम में से कुछ लोग तब नहीं रहेंगे जब भारत 2047 में अपनी आजादी की शताब्दी मनाएगा लेकिन आप भारत@2047 के असली योद्धा हैं। आप सभी की वजह से भारत दुनिया में शीर्ष पर होगा और यह वास्तव में तय है।

दूसरा, हमने तो कर दिखाया है। 130 करोड़ लोग कोविड-19 की चपेट में आ जाए और उस दौरान, 100 देशों की हम मदद करें, यह हमारी संस्कृति का मूल मंत्र है। यह हमारे सभ्यतागत लोकाचार का सार है कि संकट के समय में हम दुनिया को एक परिवार के रूप में लेते हैं और हाथ मिलाते हैं।

ऐसा दुनिया के किसी भी देश ने नहीं किया। आपको सबसे आश्चर्यचकित बात बता रहा हूं, और जिसकी आप सबको जानकारी है, 220 करोड़ को वैक्सीन सर्टिफिकेट! भारत अकेला देश है जो डिजिटल है। अमेरिका में भी वह कागज के ऊपर है। ऐसी उपलब्धि क्यों? क्योंकि हम इंडियंस का डीएनए मजबूत है। हम कौशल को तुरंत समझ लेते हैं। हम टेक्नालॉजी के एकलव्य हैं। हमें कोई टेक्नोलॉजी सिखाय ना सिखाएं, गांव का आदमी भी टेक्नोलॉजी समझ सकता है वरना अगर गांव का आदमी टेक्नोलॉजी नहीं समझता तो 11 करोड़ किसानों को साल में तीन बार आर्थिक सहायता सीधी कैसे मिलती? हम जिस जमाने में रहते थे पावर कॉरिडोर्स के अंदर पावर ब्रोकर रहते थे। देश में बहुत बड़ा बदलाव आया है। भ्रष्टाचार के लिए कोई स्थान नहीं है। सत्ता के गलियारों को उन लोगों से मुक्त कर दिया गया है जिन्होंने सरकारी निर्णयों का कानूनी तौर पर अतिरिक्त लाभ उठाया है। ये एक बड़ा बदलाव है और यह बदलाव किसी सरकार का और व्यवस्था का अकेला योगदान नहीं है। हर भारतीय का योगदान है। इसके अंदर जब इतनी बड़ी ग्रोथ होती है तो चुनौतियां आती है। न्यूटन का थर्ड प्रिंसिपल क्या कहता है? (हर क्रिया की बराबर और विपरीत प्रतिक्रिया होती है।) तो दुनिया में भी प्रतिक्रिया हो रही है कि भारत की इतनी महानतम उपलब्धियों को हम पचा कैसे पाएंगे। मैं युवाओं से अपील करता हूं कि वे बहुत समझदार और विवेकशील बनें, हर चीज पर विचार करें और एक रुख अपनाएं। यदि अगर मैं सैनिक स्कूल चित्तौड़गढ़ में, जहां मेरा गैर-जैविक जन्म हुआ है वहां पर मेरी चिंता व्यक्त नहीं करूंगा तो कहीं नहीं कर पाऊंगा। हमारे देश के अंदर आवश्यकता है आज के दिन हर व्यक्ति कानून की बात करेगा, कानून के दायरे में रहे, व्यक्ति कितना ही बड़ा हो कितना ही उसका बैकग्राउंड हो, कितने बड़े औदे पर हो, उसको कानून के दायरे में काम करना पड़ेगा।

कानून द्वारा निर्धारित न्याय का लाभ उठाए बिना न्याय पाने के लिए सड़कों पर उतरने की प्रवृत्ति अराजकता को जन्म देगी और हमारी न्यायिक प्रणाली बहुत मजबूत है। आपने देखा होगा हाल के दिनों में निष्पक्षता से महत्वपूर्ण फैसले लिए गए हैं, ऐसा कोई कारण नहीं है कि हमारा विश्वास हमारी संस्थाओं से डिगे। और हम किसी को यह अधिकार नहीं दे सकते, एक ढीले कैनन की तरह आप हमारी संस्थाओं पर हमला करते हैं, उन्हें कलंकित करने और उनकी विश्वसनीयता को कम करने की कोशिश करते हैं तो पीड़ा होती है। मैं नहीं कहता सब कुछ सही है, जरूर कुछ ऐसी बातें हैं जिनमें बदलाव की आवश्यकता है और उस बदलाव का एक प्लेटफार्म है।

राज्यसभा का सभापति होने के नाते मैं मेरी पीड़ा व्यक्त कर रहा हूं। संविधान सभा ने 3 साल तक कई मीटिंग्स की और उनके सामने जो मुद्दे थे, आज के मुद्दों के हिसाब से काफी जटिल, विभाजनकारी, विवादास्पद थे। तब का हल बातचीत से निकाला क्योंकि डेमोक्रेसी में पार्लियामेंट और लेजिस्लेचर किस चीज के लिए है संवाद, बहस, विचार-विमर्श, विचार-विमर्श के लिए वह अशांति और व्यवधान के लिए नहीं है। संविधान सभा में एक भी दिन, एक भी पल कोई डिस्टरबेंस नहीं हुई। उस परिप्रेक्ष्य में जब आज को देखता हूं चिंता का विषय है, चिंतन का विषय है आप लोगों के लिए मंथन का विषय है। यदि अगर आप स्कूल के वातावरण में अनुकूलता नहीं दिखाएंगे अनुशासन का प्रदर्शन नहीं करेंगे तो सब कुछ चरमरा जाएगा।

तो ऐसा काम करना चाहिए जिससे देश का नाम ऊपर हो। मैं बहुत ज्यादा समय नहीं लूंगा,  लेकिन मैं अपने युवा लड़कों और लड़कियों से कहूंगा कि अपने राष्ट्रीय हित को हमेशा किसी भी चीज से ऊपर रखें। यह वैकल्पिक नहीं है बल्कि यही एकमात्र तरीका है। हर हालत में हमें देश को सर्वोपरि रखना पड़ेगा। हम अपने राष्ट्रीय हित से समझौता नहीं कर सकते। हमें हमेशा गौरवान्वित भारतीय रहना चाहिए और अपनी ऐतिहासिक अभूतपूर्व उपलब्धियों पर गर्व करना चाहिए।

आज के दिन व्यवस्था बदल गई है। पहले था कि व्यापार करेगा तो बड़े खानदान का होना चाहिए, हालात बदल गए हैं। युवा लड़के और लड़कियां जो बाहर निकल कर आते हैं, अपना स्टार्टअप करते हैं और पता लगता है वह बिलेनियर हो गए। अधिकर यूनिकॉर्न उन्होंने किए हैं।

आप सब को मेरी बहुत-बहुत शुभकामनाएं! अंत में एक बात ध्यान रखना, असफलता से डरें नहीं। असफलता का डर सबसे बड़ी बीमारी है जो मानवता को नष्ट कर सकती है। किसी ने भी पहले कदम पर सफलता हासिल नहीं की है। नील आर्मस्ट्रांग जब चांद पर पहुंचा 20 जुलाई 1969 को तो उससे पहले भी प्रयास हुए थे। अब चंद्रयान-3 जा रहा है, कल हम सब प्रतीक्षा करेंगे पर जब चंद्रयान-2 गया था तो आधी रात को, मैं 500 लड़के-लड़कियों के साथ था, जो आपके उम्र के बच्चे थे। मैंने सबको आमंत्रित किया था और आखिर के अंदर जब वह सॉफ्ट लैंडिंग नहीं हो पाई तो सन्नाटा छा गया, मैंने कहा चीयर अप! 95% सफलता मिल चुकी है और बस 5% नहीं मिली है।

आप सबको वह दिन याद होगा जब इसरो के उस डायरेक्टर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गले लगाया और कहा- “हम इसे अगली बार करेंगे”, कभी आशा न खोएं, कभी साहस न खोएं, अपने दृढ़ विश्वास पर यकीन रखें, एक अच्छे विचार को अपने दिमाग तक ही सीमित न रहने दें, नवोन्मेषी बनें, चीजें अपना आकार ले लेंगी। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद!

एमजी/ एमएस/आरपी/केजे/एसके

Wcnews7.in Abhimanyu

Working continuously in the media sector for the last 15 years, by regularly covering the news of various departments of local and regional, national and international government and non-governmental social organizations, creating a separate identity in the media sector, creating a separate identity for my mother in print media and online media. I am playing a role in which special attention is given to criminal news, crime news, as well as news related to human rights and justice against injustice, have done and are doing all ditel Jion us 78787-29517 Thanks again for Abhimanyu Chief In Editor And Editor Rajlaxmi Bathra

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