संपर्क सूत्र

आध्यात्मिक आनंद पाने के लिए ध्यान सर्वोपरि औषधि : श्री चन्द्रप्रभ


जितनी सजगता से पापड़ सेकते हैं उतनी जागरूकता से जीवन जीना ही ध्यान है।
उदयपुर, 12 अगस्त। राष्ट्र-संत श्री चन्द्रप्रभ महाराज ने कहा है कि ध्यान महामार्ग है। विश्व के सभी धर्मों के मार्ग अलग हो सकते हैं, पर ध्यान सर्वत्र है। अतीत, वर्तमान या भविष्य – हर युग में मनुष्य के अशांति, तनाव और चिंता से मुक्त होकर आध्यात्मिक आनंद का मालिक बनने के लिए ध्यान सर्वोपरि औषधि रहा है। अंतर-जगत का अपना स्वाद, सुवास एवं प्रकाश है। स्वयं में प्रवेश करने के लिए ध्यान ही एकमात्र मार्ग है। ध्यान आत्म-ज्ञान को प्राप्त करने की कुंजी है। समस्त तीर्थंकर महापुरुषों ने अपने साधना काल में लगातार ध्यान ही किया है। एकांत, मौन और ध्यान उनके साधना के आधार रहे। इसीलिए दुनिया भर में तीर्थंकरों की समस्त प्रतिमाएँ ध्यान अवस्था में हैं। ध्यान तीर्थंकरों का मार्ग है।
संतप्रवर नगर निगम के टाउन हॉल मैदान में आयोजित 54 दिवसीय प्रवचनमाला में ध्यान में जिओ, ध्यान में मरो विषय पर प्रवचन दे रहे थे। उन्होंने कहा कि ध्यान अध्यात्म का मार्ग है। इसके लिए कुछ भी उपक्रम करने की जरूरत नहीं, केवल मुक्त होकर जहाँ बैठे हो वहीं आँख बंद करके अपने में उतर गए, छोटी-सी डुबकी लगा ली और अंतरजगत का आनंद ले लिया।  विज्ञान और ध्यान दोनों ही प्रयोगधर्मी हैं। विज्ञान के प्रयोग बाहर और ध्यान के भीतर होते हैं। विज्ञान उस चाँद तक पहुँचाता है जहाँ से व्यक्ति मिट्टी के ढेले लेकर आता है और ध्यान उस अंतर-लोक तक पहुँचाता है जहाँ आत्मा और परमात्मा का सत्य समाहित है।
राष्ट्र-संत ने कहा कि ध्यान जीवन की प्रत्येक गतिविधि के लिए भी जरूरी है। जितनी सजगता से महिला पापड़ सेकती है अगर उतनी ही सजगता से हम जीवन को जी लें, तो जीवन के हर कदम पर ध्यान के फूल खिल सकते हैं। गर्म तवे से हाथ जला, क्योंकि ध्यान चूक गए। चलते हुए गड्ढे में गिर गए क्योंकि वहाँ भी ध्यान चूक गए। हाथ में प्लास्टर का पट्टा बंधा, क्योंकि ध्यान चूक गया, पाँव फिसल गया। भोजन करते समय गाल दाँत के बीच में आ गया क्योंकि ध्यान चूक गया। सर्वत्र जरूरी है ध्यान।  
संतप्रवर ने कहा कि ध्यान-साधना के चार आधार हैं – 1. आत्मा की अमरता, 2. आनंद मेरा स्वभाव, 3. आत्मा की स्वतंत्रता, 4. मैं दु:ख भोगने नहीं जन्मा हूँ।  ध्यान के चार साधन हैं – 1. एकांत, 2. एकाग्रता, 3. श्वास-संयम और 4. प्रसन्नता। जब ये चारों साधक के तन-मन में जुड़ते हैं तो ध्यान अपना परिणाम देता है। उन्होंने कहा कि ध्यान की आवश्यकता है – सहजता, सजगता, समरसता, प्रसन्नता, लयबद्धता और धीरजता। ये जीवन के वे महान सद्गुण हैं जो किसी भी व्यक्ति को महापुरुषों की श्रेणी में खड़ा करते हैं।  ध्यान के चार परिणाम हंै – 1. सच्चे स्वरूप का बोध, 2. असीम आनंद की प्राप्ति, 3. महामौन और 4. संवेदनशीलता का विकास। जैसे पत्थर में से मूर्ति डिस्कवर होती है – वैसे ही ये परिणाम साधक को सहज उपलब्ध होते हैं।
संतश्री ने कहा कि ध्यान का प्रवेश-द्वार है – बाहर से भीतर मुड़ो, भीतर के विकार समाप्त करो और परम शांति में जिओ। जैसे महापुरुषों का जन्म किसी शुभ वेला, शुभ घड़ी और शुभ नक्षत्र में होता है ऐसे ही ध्यान का जन्म भी एक विशेष भावदशा और निर्मल वातावरण में होता है। उन्होंने कहा कि बाहर का वातावरण – स्वच्छ स्थान, पवित्र वातावरण, एकांत आसन, ज्ञानमुद्रा या योगमुद्रा। बाएँ हाथ पर दायाँ हाथ – ये सब ध्यान की बाहरी आवश्यकता हैं। सांसारिक गतिविधियों पर अंकुश, व्रतों का पालन, आसक्ति का त्याग, इंद्रियों पर संयम, कषायमुक्ति और हृदयशुद्धि ये सब ध्यान के लिए आंतरिक वातावरण को निर्मल करने के लिए जरूरी हैं। ध्यान हमेशा उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुँह करके कीजिए। बैठते समय आसन थोड़ा मोटा बिछाएँ। पद्मासन, सिद्धासन या सुखासन में बैठ सकते हैं। कपड़े ज्यादा टाइट न पहनें, कक्ष में जब ध्यान कर रहे हैं, वहां प्रकाश कम हो। ध्यान के प्रारंभ में ओम्, सोहम् या शिवोहम् जैसे सूक्ष्म मंत्रों का भी प्रयोग कर सकते हैं।
राष्ट्र-संत ने कहा कि आसन, प्राणायाम, स्वाध्याय, कीर्तन और व्रतों का पालन – ये ध्यान का परिवार है। हर साधक को ध्यान के इन सभी सदस्यों को जीवन में जोड़कर रखना चाहिए। ध्यान के प्रारम्भिक चरण में श्वास-दर्शन कीजिए ताकि एकाग्रता सधे, चित्त की वृत्तियों को निहारिए ताकि भीतर में शांति उतर सके, स्वयं को हृदय पर केन्द्रित कीजिए ताकि भाव शुद्ध हो, सहस्रार पर केन्द्रित कीजिए ताकि आत्मबोध प्राप्त हो और विदेह-दर्शन कीजिए ताकि परमात्म-दर्शन हो सके।
समारोह का सफल संचालन वीरेन्द्र सिरोया ने किया। समिति के अध्यक्ष राज लोढ़ा के अनुसार रविवार को सुबह 8.45 बजे संत ललितप्रभ महाराज पर्युषण : मिटाए भीतर का प्रदूषण पर विशेष प्रवचन देंगे।

Wcnews7.in Abhimanyu

Working continuously in the media sector for the last 15 years, by regularly covering the news of various departments of local and regional, national and international government and non-governmental social organizations, creating a separate identity in the media sector, creating a separate identity for my mother in print media and online media. I am playing a role in which special attention is given to criminal news, crime news, as well as news related to human rights and justice against injustice, have done and are doing all ditel Jion us 78787-29517 Thanks again for Abhimanyu Chief In Editor And Editor Rajlaxmi Bathra

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button