क्रोध हटाएँ, मुस्कान बढ़ाएँ, कषायों से मुक्ति पाएँ : श्री ललितप्रभ
स्वर्ग उनके लिए है जो अपने गुस्से को काबू में रखते हैं।
उदयपुर, । राष्ट्र-संत श्री ललितप्रभ महाराज ने कहा है कि किसी भी व्यक्ति के लिए वेश का परिवर्तन करके संत बनना सरल होता है, पर स्वभाव सुधारकर संत बनना जीवन की महान साधना है। केवल ड्रेस और एड्रेस बदलने से व्यक्ति को साधना का निर्मल परिणाम नहीं मिल सकता जब तक की वह अपना नेचर नहीं बदल लेता। दियासलाई दूसरों को जलाने के लिए जलती है पर दुसरा जले या न जले पर खुद को तो जलना ही पड़ता है। ऐसे ही हमारा क्रोध और कषाय है जो दूसरों के बजाय हमें ज्यादा दुखी करता है। क्रोध आदमी करता भी खुद है और दुखी भी खुद होता है। ऐसा नहीं है कि क्रोध करने से आदमी नरक में जाता है और प्रेम और क्षमा से स्वर्ग में जाता है। सच्चाई तो यह है कि जब हम क्रोध कर रहे होते हैं तो नरक में ही होते हैं और जब हम प्रेम और क्षमा में जी रहे होते हैं तब हम स्वर्ग में ही होते हैं।
संतप्रवर नगर निगम के टाउन हॉल मैदान में आयोजित 54 दिवसीय प्रवचनमाला में ऐसी लगाएँ युक्ति कि हो कषाय-मुक्ति विषय विषय पर प्रवचन दे रहे थे। उन्होंने कहा कि कषाय से आत्मा का पतन होता है। हमारा अंतरमन उजाले के बजाय अंधेरे में जाता है। जैसे जानवर के गले में डोरी डालकर चाहे जिस दिशा में खींचा जा सकता है वैसे ही कषायों के पास में बंधा हुआ इंसान क्रोध, मान, माया में घिरा रहता है। हम ऐसी गाड़ी में चल रहे हैं जिसमें सब कुछ है पर ब्रेक नहीं है, हमारा स्वयं पर नियंत्रण नहीं है। उन्होंने कहा कि हमें घर परिवार में दूसरों को सुधारने के लिए बहुत ज्यादा कषायों से नहीं घिरना चाहिए, वे सुधरे के न सुधरे पर हमारी आत्मा का पतन तो हो ही जाता है। संतप्रवर ने कहा कि हमें हमेशा क्रोध को जीतने के लिए मुस्कान को तवज्जो देनी चाहिए। जैसे ट्रकों के पीछे लिखा रहता है – देखो मगर प्यार से, वैसे ही खुद को प्रेरित करना चाहिए गुस्सा करो मगर मुस्कुरा के। जैसे-जैसे मुस्कान बढ़ेगी वैसे-वैसे गुस्सा खत्म होगा। स्टुडियो में दो सेकंड मुस्कुराने से हमारा फोटो सुंदर आता है, अगर हम हर समय मुस्कुाएँगे तो हमारी जिंदगी कितनी सुन्दर हो जाएगी।
राष्ट्र-संत ने कहा कि जब क्रोध में किसी का अपमान कर रहे होते हैं तो उसका अपमान बाद में होता है पहले हम अपना सम्मान खो रहे होते हैं। हम अपनी दो तरह की सेल्फी लें- एक गुस्से का पॉज बनाकर और दूसरी मुस्कान का पॉज बनाकर और दोनों फोटो सबको भेजकर देख लें और उन्हीं को पूछ लें कि आपका कौनसा चेहरा सुन्दर लग रहा है। क्रोध किया और क्रोध का परिणाम देखा, प्रेम किया और प्रेम का भी परिणाम देखा और निष्कर्ष यही आया कि दुनिया में साँवला चेहरा भी सुंदर लगता है अगर वो मुस्कुरा रहा हो और गोरा चेहरा भी अच्छा नहीं लगता है जिसमें मुँह चढ़ा हुआ हो। क्रोध में तीव्र गति से हमारे कर्म का बंधन होता है। संत प्रवर ने कहा स्वर्ग उनके लिए है जो अपने गुस्से का अपने काबू रखते हैं और स्वर्ग उनके लिए जो गलती करने वालों को माफ कर दिया करते हैं, ईश्वर उनसे प्यार करते हैं जो दयालुु और करूणाशील होते हैं। उन्होंने कहा कि हमें मिठाइयों से सीखना चाहिए कि जलेबी में कितनी भी उलझने हों, पर स्वाद में रसीली होती है, रसगुल्ले को कितना भी निचोड लो वापस अपने आकार में आ जाता है। दबाव में आकर लड्डू बिखर जाता है और वापस एक होकर निखर जाता है। सोहन पपड़ी भले ही खाने में कम और गिफ्ट देने ज्यादा काम आती हो पर दुखी नहीं होती वह मीठी की मीठी रहती है। हम इनसे सीखें कि विपरीत वातारण में भी मुस्कुराने का आनंद लिया जा सकता है।
राष्ट्र-संत ने कहा कि हमें अहंकार के कषाय से बाहर निकलना चाहिए। दुनिया में सबकुछ करना सरल है पर सरल होना मुश्किल है। सीधी लकड़ी पर तिरंगा लहराता है और टेढ़ी लकड़ी जलाने के काम आती है। हमें रूप, रंग, कुल, धन और जमीन-जायदाद का अहंकार नहीं करना चाहिए ये आज हैं कल नहीं रहेंगे। मुँह में हमारे दाँत भी है और जीभ भी। नरम जीभ जनम से आती है और मरते दम तक हमारे मुँह में रहती है। कड़क दाँत पीछे आते हैं और पहले निकल जाते हैं। उन्होंने कहा कि हमें कभी सम्मान पाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। सम्मान पाने से ज्यादा सम्मान देने में आनंद आता है जब भी हम किसी के ललाट पर चंदन का तिलक करते हैं,तो हमारे अंगूठे में खुशबू पहले आती है। उन्होंने कहा कि किसी का सरल व्यवहार उसकी कमजोरी नहीं होती अपितु उत्तम संस्कार का परिणाम होता है।
समारोह का शुभारंभ जैन शोसल गु्रप मेन की महिला विंग एवं देलवाड़ा जैन समाज के वरिष्ठ श्रावकों ने दीप प्रज्वलन के साथ किया। समारोह का सफल संचालन हंसराज चौधरी ने किया। समिति के लाभार्थी वीरेन्द्र सिरोया के अनुसार बुधवार को सुबह 8.45 बजे संत ललितप्रभ महाराज कौन-सी करें तपस्या जो दूर करें समस्या पर विशेष प्रवचन देंगे।