घाणावार तेली समाज महिलाओ ने धूमधाम से मनाया सावन लहरिया महोत्सव
लहरिया बिना अधूरा है सावन
निम्बाहेड़ा। घाणावार तेली समाज महिलाओ द्वारा प्रथम बार लहरिया महोत्सव हर्षोल्लास नाच गान खेल कुद प्रतियोगिता के साथ मनाया गया।
प्राप्त जानकरी के अनुसार तेली समाज महिलाओ ने बताया कि सावन का मतलब हर जगह हरियाली खुशहाली ही खुशहाली होता हैं। हमारे अपने राजस्थान प्रदेश में सावन माह से ही त्योहारों की शुरुआत होती है। इस वजह से भी यह महीना बहुत खास होता है। इस माह में भगवान शिव के पूजा-उपासना की जाती है उनके लिए व्रत रखे जाते हैं और महिलाएं कुछ खास चीज़ों को इस महीने अपने साज-श्रृंगार में शामिल करती है जिसमें से एक है लहरिया।
समाज की महिलाओ की ओर से प्रथम बार आयोजित लहरिया महोत्सव मनाते हुए विभिन्न प्रतियोगिताएं सम्पन्न हुई जिसमें कबड्डी, रस्सी खिचाई, निम्बु चम्मच, अंन्तराक्षी आदि प्रतियोगिता में भाग लेने एवं प्रथम द्वितीय तृतीय स्थान प्राप्त करने वाली महिलाओ को सम्मानित भी किया गया। साथ ही बालिकाओ ने भी कई प्रतियोगिता में हिस्सा लिया और अपनी प्रतिभा को आगे लाया गया। उसके बाद प्रतियोगिता में प्रथम द्वितीय तृतीय स्थान प्राप्त करने वाली प्रतिभाओं का सम्मान हेतु समाज के सामाजिक बुद्धिजीवी प्रबुद्ध पदाधिकारियों को आमंत्रित किया गया जिसमें बाबूलाल दशोरा, बंशीलाल राईवाल, मानकजी बनवार,ओमप्रकाश रायवाल, जगदीश चंद्र दशोरा, जगदीश वाथरा, रविन्द्र गुलानिया आदि पुरस्कार वितरण किया गया।महिलाओ ने सावन के गाने सतरंगी लहरिया, गरबा नृत्य, पर खुब नृत्य किया गया समाज की मातृशक्ति का कहना है कि महिला कार्यकारिणी सदस्य पदाधिकारियों द्वारा इस तरह हर तीज-त्यौहार का आयोजन किया जाए तो हमारी प्रतिभा मे निखार आने के साथ साथ पारिवारिक जीवन में भी खुशहाली आए।
लहरिया शब्द का मतलब
लहरिया रंगाई की बहुत ही अलग तरह की कला है। जिसमें पानी की लहरों की बनावट नजर आती है। ऊपर-नीचे उठती हुई आड़ी-तिरछी लकीरों की छाप एक नया भाव प्रकट करती हैं।
क्या है लहरिया?
जानकारी के अनुसार लहरिया राजस्थान की एक पारंपरिक टाई एंड डाई तकनीक है। इसे 17वीं शताब्दी में ईजाद किया गया था। सर्वप्रथम राजपुताना राजाओं की पगड़ी से शुरुआत किया जाता था। वैसे ये परंपरा आज भी बनी हुई है। 19वीं शताब्दी के अंत तक इसका इस्तेमाल राजस्थान के कई अलग-अलग हिस्सों में होने लगा। राजस्थानी संस्कृति की बात करें तो राजस्थान में लहरिया सिर्फ कपड़े पर उकेरा गया सिर्फ एक डिजाइन या स्टाइल नहीं, बल्कि यह रंग-बिरंगी धारियां शगुन और संस्कृति के वो रंग लिए हुए हैं, जो राजस्थानी संस्कृति को बयां करते हैं। सावन में लहरिया पहनना बहुत ही शुभ माना गया है। पहले ये लहरिया प्रिंट केवल मेवाड़ के राजघराने के लिए ही बनता था और नीला लहरिया तो आज भी मेवाड़ राजघराने की धरोहर के रूप में जाना जाता है। तब से यह परम्परानुसार मनाया जा रहा हैं।
लहरिया महोत्सव में अल्का पंचोली संरक्षक, ललिता रविन्द्र गुलानिया, अध्यक्ष, राजलक्ष्मी बाथरा सचिव, माया ललित बाथरा कोषाध्यक्ष, मंजु गेरोटिया, भारती कमलेश बनवार,
लता वाथरा, माया वाथरा, कंचन जूनिवाल, सीता मंगरोरा, नीतु वाथरा, मैना वाथरा, लक्ष्मी आसरमा, किरण दशोरा, मंजू आसरमा, सुमित्रा मंगरून्ड़िया, किरण आसरमा, आशा हुवासिया, रिना जूनिवाल, मंजू रोजा, मंजू आसरमा, कृष्णा पंचोली, सुगना आसरमा, लीला वाथरा, आशा गेरोटिया, सुमित्रा दिनेश वाथरा, सुरज मंगरून्ड़िया, पुजा अस्तोलिया, हेमलता राईवाल, सपना राईवाल, प्रिया गेरोटिया, लता मंगरून्ड़िया, रविना वाथरा, संतोष वाथरा, पुजा वाथरा, सीमा वाथरा, मीना नैणावा, संगीता वाथरा, माला वाथरा, अनिता आसरमा, लाड अस्तोलिया, मुन्नी डोढ़रिया, ममता सोनावा, आशा मंगरोरा,
बालिकाओ में
परी बनवार, वंशीका बनवार, खुशी गुलानिया, इंशिका राजोरा, अंतिमा जरवार, वंशिका वाथरा, इशानी मंगरून्ड़िया, दक्ष बनवार, ओम गुलानिया, युवी बनवार, पुजा आसरमा, ऊषा आसरमा, जीया आसरमा, परी आसरमा, निहारिका वाथरा, रितिका वाथरा, माया वाथरा, इंशिका वाथरा सहित समाज की महिला पुरुष बालक बालिकाओ ने भाग लिया।