इस मौसम की बारिश का सबसे ज्यादा खमियाजा किसानों को उठाना पड़ा है। पंजाब, हरियाणा, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश में धान, कपास, सोयाबीन और उड़द की फसलों पर काफी बुरा असर पड़ा है। जो फसलें काट ली गई थीं, वे भीग गई हैं और मंडी में इनके अच्छे दाम मिलने की उम्मीदों पर पानी फिर गया है। भारत के ज्यादातर राज्यों में इन दिनों बारिश की वजह से काफी मुश्किल हालात पैदा हो गए हैं। मौसम विभाग का कहना है कि मानसून विदा हो रहा है, इसलिए पूरी ताकत से बरस रहा है। वैसे भी भादो के महीने में होने वाली बारिश आसानी से नहीं थमती। इस बार जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, पंजाब से लेकर राजस्थान, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के ज्यादातर हिस्से तेज बारिश की मार झेल रहे हैं। दरअसल, ओड़िशा में आए समु्द्री तूफान का असर पश्चिम बंगाल और आसपास के राज्यों पर पड़ा है। हाल ही में बड़ी आपदा झेल चुके केरल के कई इलाकों में फिर से भारी बारिश की चेतावनी दी गई है। यानी जाता हुआ मानसून सामान्य से ज्यादा सक्रिय है। इसी के साथ होने वाले हादसे और नुकसान भी बढ़ रहे हैं। हिमाचल प्रदेश में हालात सबसे विकट हैं। हिमाचल चूंकि पहाड़ी राज्य है, इसलिए तेज बारिश में नदियां उफन जाती हैं और बाढ़ जैसे हालात बनते देर नहीं लगती। राज्य में कुछ जगहों पर तो बादल फटने से कहर टूट पड़ा। कई जगहों से लोगों के उफनते नालों और नदियों में बह जाने की खबरें हैं। व्यास नदी की बाढ़ में एक वोल्वो बस के बह जाने की जो तस्वीर वायरल हुई है, उससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि राज्य को कितनी गंभीर प्राकृतिक आपदा से जूझना पड़ रहा है।
इस मौसम की बारिश का सबसे ज्यादा खमियाजा किसानों को उठाना पड़ा है। पंजाब, हरियाणा, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश में धान, कपास, सोयाबीन और उड़द की फसलों पर काफी बुरा असर पड़ा है। जो फसलें काट ली गई थीं, वे भीग गई हैं और मंडी में इनके अच्छे दाम मिलने की उम्मीदों पर पानी फिर गया है। ऐसी आपदाओं के पीड़ित किसानों को सरकारों का मुंह ताकने को मजबूर होना पड़ता है। किसानों की समस्या कृषि उपज को सुरक्षित रखने और उसे मंडी तक पहुंचाने की होती है। ज्यादातर मंडियों में किसानों को खुले में ही पैदावार रखने को मजबूर होना पड़ता है। ऐसे हालात में सरकारों की प्राथमिकता किसानों की मदद होनी चाहिए, जो हकीकत में हो नहीं पाती। यह हमेशा का राग है। किसान हर साल अच्छे मानसून की उम्मीद में रहता है। संयोग से मानसून सामान्य रहे और फसल अच्छी हो जाए तो उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहता है। लेकिन इस तरह की आपदा उसके सपनों पर पानी फेर देती है। इस साल देश के कई राज्यों को अचानक आए तूफान और बारिश की मार झेलनी पड़ी है। ऐसे में बार-बार यही सवाल उठता है कि पिछली तबाहियों से हमने आखिर क्या सीखा। हमारा आपदा प्रबंधन कितना चौकस और दुरुस्त हुआ। हालांकि पिछले तीन-चार दिन में जम्मू, हिमाचल के कई इलाकों में समय रहते सेना के जवानों ने लोगों को बचाया है। वायुसेना की मदद से दुर्गम इलाकों में फंसे लोगों को निकाला गया। लेकिन देखने में आया है कि लोग खतरे को जानते हुए भी जोखिम उठाने से बाज नहीं आते। हिमाचल प्रदेश की कई घटनाएं इस बात का प्रमाण हैं। लोग उफनते नाले-नदियों को भी पार करने का दुस्साहस करते हैं और ऐसे में बह जाते हैं। जिन जगहों पर अचानक उफान आने का खतरा रहता है, वहां चेतावनी बोर्ड लगे होने चाहिए, लेकिन बहुत-सी जगहों पर ऐसा नहीं है। मैदानी इलाकों की बरसात के मुकाबले पहाड़ी क्षेत्रों में खतरे की प्रकृति और स्वरूप ज्यादा जोखिम भरे और गंभीर होते हैं। इसलिए इनसे निपटना भी एक चुनौती होती है। यह सच है कि मौसम का अपना नियत चक्र होता है और आपदाओं को रोका नहीं जा सकता, लेकिन अचानक आई आपदा से निपटने के पूर्व इंतजाम जरूर किए जा सकते हैं।